महर्षि जी की कृपा का फल

भोपाल  [ महामीडिया ] महर्षि जी ने हजारों भावातीत ध्यान के केन्द्र स्थापित किये, लाखों व्यक्तियों को ध्यान और पतंजलि योग सूत्रों पर आधारित सिद्धि कार्यक्रम का प्रशिक्षण दिया। निष्काम कर्मयोग और ‘‘योगस्थ: कुरू कर्माणि’’ का प्रयोग प्रथम बार किसी ने सम्पूर्ण विश्व को प्रायोगिक रूप में दिया। इसी क्रम में महर्षि जी ने भगवद् गीता की व्याख्या भी लिखी जो अपने आप में एक अनूठी कृति है। लगभग इसी समय में महर्षि जी ने ब्रह्म सूत्रों की भी व्याख्या की और ‘‘साइन्स आफ बीइंग एण्ड आर्ट आफ लिविंग’’ नामक पुस्तक लिखी, जिनका अनुवाद विश्व की अनेक भाषाओं में हो चुका है और अब तक लाखों प्रतियाँ प्रकाशित हो चुकी हैं। महर्षि जी ने ‘‘चेतना विज्ञान’’ की रचना की और उनका ये चेतना विज्ञान करोड़ों लोगों ने एक पाठ्यक्रम के रूप में लिया और अपने जीवन के आधार चेतना को विकसित कर ब्रह्मीय चेतना के स्तर तक पहुँचे।
    महर्षि जी का सत्संकल्प कि मनुष्य जन्म संघर्ष के लिये नहीं, दु:ख से व्यथित होने के लिये नहीं है, केवल आनन्द और मोक्ष के लिये हुआ है, इस सिद्धांत पर आधारित कार्यक्रम उन्हें निरंतर आगे बढ़ाते गये। वेद निर्मित, ज्ञान शक्ति और आनन्द चेतना के सागर, वेदान्तिक महर्षि जी वास्तविक ऐतिहासिक अमर जगतगुरु हो गये।
    महर्षि जी ने विश्व भर में व्याप्त समस्याओं और संघर्ष की समाप्ति के लिये ‘‘विश्व योजना’’ बनाई जिसके प्रमुख उद्देश्यों में व्यक्ति का पूर्ण विकास करना, प्रशासन की उपलब्धियों को बढ़ाना, शिक्षा के सर्वोच्च आदर्शों को स्थापित करना, समाज में प्रचलित विभिन्न प्रकार के अपराध और अप्रसन्नताकारक व्यवहार को समाप्त करना, पर्यावरण का बुद्धिमत्तापूर्ण उपयोग करना, व्यक्ति के आध्यात्मिक लक्ष्यों की पूर्ति कराना था। इसके लिये महर्षि जी ने 2000 नये चेतना विज्ञान के शिक्षक तैयार किये और 2000 ‘विश्व योजना केन्द्र’ स्थापित किये। ‘ज्ञान युग’ की स्थापना के लिये महर्षि जी ने विश्व भ्रमण किया और प्रथम विश्वविद्यालय ‘महर्षि यूरोपियन रिसर्च यूनिवर्सिटी’ की स्थापना स्विट्जरलैण्ड में करके फिर अनेक वैदिक, आयुर्वेदिक और प्रबन्धन विश्वविद्यालयों की स्थापना की।
    महर्षि जी ने आदर्श समाज की स्थापना के लिये विश्वव्यापी अभियान चलाया और 108 देशों में ‘यौगिक उड़ान’ का अभ्यास करने वाले समूह भेजे। इन देशों के वैज्ञानिकों ने और सरकारों ने यह पाया कि बड़ी संख्या में सामूहिक ध्यान अत्यन्त प्रभावी होता है। किसी भी राष्ट्र की जनसंख्या का एक प्रतिशत यदि सामूहिक भावातीत ध्यान करे तो सामूहिक चेतना में सतोगुण की अभिवृद्धि होकर रजोगुणी और तमोगुणी नकारात्मक चेतना का शमन होता है। वैज्ञानिकों ने इसे ‘महर्षि प्रभाव’ का नाम दिया। वर्ष 1983 में पहली बार ‘टेस्ट आॅफ यूटोपिया’ असेम्बली के नाम से 7000 यौगिक फ्लायर्स फेयरफील्ड आयोवा, अमेरिका में एकत्र हुए और कई सप्ताहों तक सामूहिक भावातीत ध्यान, सिद्धि कार्यक्रम और यौगिक फ्लाइंग का अभ्यास किया। तब वैज्ञानिकों ने यह सिद्ध किया कि यदि विश्व की जनसंख्या के एक प्रतिशत के वर्गमूल बराबर व्यक्ति एक साथ, एक स्थान और समय पर सामूहिक यौगिक उड़ान भरें तो सतोगुण बहुत अधिक बढ़ेगा और सारी नकारात्मकतायें स्वयं ही समाप्त हो जायेंगी। इस अनुभव और प्रयोग के पश्चात सारे विश्व में अनेक विश्व शांति सभायें- ‘वर्ड पीस असेम्बलीस्’ आयोजित की गर्इं और उनके बहुत उत्तम परिणाम सामने आये।
    महर्षि जी ने ‘‘रोग विहीन समाज’’ की स्थापना का न केवल नारा ही दिया, बल्कि आयुर्वेद के शार्षस्थ विद्वानों, शोधकर्ताओं, वैद्यों के साथ कई वर्षों तक शोध करके महर्षि जी ने आयुर्वेद के चिकित्सालयों और औषद्यी निर्माण शालाओं की स्थापना की। वैदिक स्वास्थ्य विधान के पाठ्यक्रमों की रचना करके हर व्यक्ति को स्वास्थ्य शिक्षा देने का विधान किया। देश-विदेश के अनेक संस्थानों में वैदिक स्वास्थ्य विधान के प्रमाण-पत्र व उपाधि पाठ्यक्रम उपलब्ध हैं। मंत्र चिकित्सा पर अनेक शोध कराये गये और अनेक कष्टसाध्य रोगों की त्वरित चिकित्सा आज सारे विश्व में  उपलब्ध है।
    महर्षि जी ने सम्पूर्ण वैदिक वांङ्गमय से चुन-चुनकर जीवनपरक और त्वरित लाभ प्रदाता सिद्धांतों और प्रयोगों के आधार पर ‘भूतल पर स्वर्ग निर्माण’ का कार्यक्रम बनाया और इसे जन-सामान्य को उपलब्ध कराया। महर्षि जी ने यह सिद्ध कर दिया कि यदि व्यक्ति चाहे तो वह अपना वातावरण स्वर्ग जैसा बना सकता है। इसके लिये उसे वैदिक शाश्वत् सिद्धांतों और प्रयोगों को अपने जीवन में अपनाना होगा। व्यक्ति प्रकृति के नियमों का पालन करते हुए जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सिद्धहस्त होकर स्वयं अपने और दूसरों के जीवन के लिये स्वर्ग का निर्माता हो सकता है। यह विस्तृत अनोखी दुर्लभ विचार शक्ति केवल महर्षि जी की ही हो सकती थी।

ब्रह्मचारी गिरीश जी 


 

- ब्रह्मचारी गिरीश जी

अन्य संपादकीय