आचरण ही आनंद का आधार है

भोपाल (महामीडिया) सौन्दर्य बोध सदियों से हमारे विमर्श का केन्द्र रहा है। प्रकृति से लेकर साहित्य तक में सुन्दरता की खोज होती है। चाहे वह लेखक हो या दार्शनिक सभी ने सुंदरता के प्रतिमानों पर विमर्श किया है। प्राय: बाहरी सुन्दरता कि तुलना में आंतरिक सुंदरता की उपेक्षा की जाती है जबकि तन की सुन्दरता से अधिक मन कि सुन्दरता आवश्यक होती है क्योंकि हमारा सुन्दर चित्त ही सुन्दरता सोचता है और वही हमारे व्यवहार में आती है। अत: हमारी सुन्दर सोच ही हमें सुन्दर व्यवहार के प्रति प्रेरित करती है। अत: स्पष्ट है कि आंतरिक सुंदरता से ही ज्ञानी पुरुष हमारा मूल्यांकन करते हैं। परमानंदजी कहते हैं कि कुछ लोग जन्म से लोकप्रिय स्वभाव के होते हैं, प्रत्येक व्यक्ति उनके प्रति आकर्षित हो जाता है। कुछ लोग कभी पसंद किए जाते और कुछ लोग न तो पसंद किए जाते हैं, और न ही नापसंद, वे मात्र उपेक्षित कर दिए जाते हैं। ईश्वर, आकर्षक गुणों के असमान वितरण के लिए उत्तरदायी नहीं हैं। प्रत्येक मनुष्य के चरित्र में भिन्नताएं उसकी अपनी उपनी उपज हैं। स्वयं उसने ही इन प्रिय या अप्रिय गुणों को अपने इस जीवन उत्पन्न किया है। बहुत बड़ा अन्याय होता, यदि ईश्वर कुछ बच्चों को आरंभ से ही अच्छे, प्रियकर गुणों की सुविधा और अन्य बच्चों को बुरे गुणों की असुविधा के साथ भेजने के लिए उत्तरदायी होते। परंतु उन्होंने कुछ बच्चों में बुरी प्रवृत्तियों और दूसरों में अच्छी प्रवृत्तियों को स्थापित नहीं किया, अत: हम ईश्वर को उत्तरदायी नहीं ठहरा सकते। व्यक्ति को स्वयं अपना और दूसरों का विश्लेषण करना सीखना चाहिए, जिससे पता चल सके कि क्यों कुछ लोग सभी द्वारा पसंद किए जाते हैं, और कुछ नहीं। अत: विश्लेषण से सबसे पहली जिस बात का पता चलता है, वह यह कि यदि कोई लोकप्रिय बनना चाहता है, तो उसे स्वयं को अंदर से और अधिक आकर्षक बनाना चाहिए। कभी-कभी शारीरिक रूप से अत्यधिक आकर्षक व्यक्ति भी विकर्षक हो सकता है, क्योंकि उसकी वाणी और क्रिया-कलापों से उसके से अंदर की कुरूपता झलकती है। एक समय था, जब लोकप्रियता का रहस्य वह एक प्रकार का शारीरिक आकर्षण और चुंबकत्व माना जाता था। परंतु यह आवश्यक नहीं कि वह होने से ही कोई लोकप्रिय हो। सबसे अच्छे और बुरे गुण यह तय करते हैं कि हम किस प्रकार के लोगों द्वारा पसंद किए जाते हैं। बुराई, बुराई को आकर्षित करती है और अच्छाई, अच्छाई को। ऐसा आकर्षण उत्पन्न करना चाहिए जो अच्छाई को हमारी ओर आकर्षित करे। क्या बाहरी तत्व, जैसे सुंदर चेहरा या कपड़े, इस प्रकार का क्षणिक आकर्षण प्रदान कर सकते हैं? अत: हमें इसे अपने अंतर में ही उत्पन्न करना होगा। आपका चेहरा एक दर्पण है, जो आपकी हर बदलती भावना को प्रकट कर देता है। आपके विचार और मनोदशा सागर की लहरों की तरह ज्वार-भाटा लेते हुए चेहरे की मांसपेशियों में बहते हैं और निरंतर आपकी मुखाकृति को बदलते रहते हैं। वह आपके मुख पर आपके अंदर को देख लेता है और उसी के अनुरूप प्रतिक्रिया करता है। याद रखें, व्यक्ति कुछ सीमा तक ही पहनावे से पहचाना जाता है, अधिकांशत: वह आचरण से ही जाना जाता है। महर्षि महेश योगी जी द्वारा प्रतिपादित भावातीत ध्यान योग शैली का नियमित प्रात: एवं संध्या का 15 से 20 मिनट का अभ्यास आपको भीतर से सुन्दर बनाने के लिए आपके सहयोगी का कार्य करते हुए आपको प्रेरित व प्रोत्साहित करता है और आंतरिक सुंदरता हमारे व्यवहार में आनंद भर देती है क्योंकि "जीवन आनंद है"।


।।जय गुरूदेव जय महर्षि।।
 

- ब्रह्मचारी गिरीश

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