"ध्यान"- अनुभवात्मक ज्ञान 

भोपाल [ महामीडिया]  जीवन तथा व्यक्तित्व के विकास में सकारात्मक दृष्टिकोण उपयोगी है तथा नकारात्मक दृष्टिकोण त्यागने योग्य है । ईश्वर ने हम सबको अलग-अलग आकार रंग और व्यक्तित्व का बनाया है। पर जो लोग अपने आप से प्रसन्न नहीं होते वह प्रायः स्वयं को योग्य बनाने के लिए अपने अंदर परिवर्तन करना चाहते हैं उदाहरण के लिए किसी भारी शरीर के व्यक्ति को लगता है कि वजन को कम करके ही वह अपने व्यक्तित्व को आकर्षक बना सकता है या सुंदर वह गोरे चेहरे से या भौतिक वैभव से या वह जो कमी उसे स्वयं में लगती है। अपनी इन कमियों को सुधारने में हम इतने व्यस्त हो जाते हैं कि अपने गुणों की ओर ध्यान ही जाना बंद हो जाता है ।सच यह है कि आप कैसे लगते हैं इसका आपके गुणों से कोई लेना-देना नहीं है ।जब हम इस बात को समझ लेंगे कि हम जैसे हैं वैसे ही महत्वपूर्ण है ।बस स्वयं को और श्रेष्ठ बना सकते हैं ।हम सबके लिए जीवन का अलग-अलग अर्थ होता है और किन्हीं दो लोगों का जीवन एक सा होता भी नहीं है ।अतः जीवन का अर्थ और उद्देश भी सबके लिए भिन्न-भिन्न होते हैं ।पर मूल बात जो समान रूप से लागू होती है वह यह है कि कभी खुशी, दूसरे को प्रभावित करने ,प्रसन्न करने के लिए स्वयं का परिवर्तन उचित नहीं ।इस बात में कोई बुराई नहीं है कि लोग आपको पसंद करें और आप से प्रभावित हों ।परिश्रम में परिवर्तन का एकमात्र उद्देश्य ही नहीं होना चाहिए ।उद्देश तो आत्मानं मूर्ति होना चाहिए इसलिए अपने जीवन के लक्ष्य को समझें और जियें ।कहते हैं हम जब बड़े होने लगते हैं ,हमारे अंदर समझ आने लगती है और व्यस्त हो जाने तक हम समझ लेते हैं कि हमें किस प्रकार का जीवन जीना है ।हमारे लक्ष्य क्या होंगे और उन्हें कैसे प्राप्त करना है ।हम सभी अपने -अपने लक्ष्य को पाने के लिए अलग-अलग रणनीति बनाते हैं और उसके अनुसार चलने का प्रयास करते हैं ।पर ऐसा आवश्यक नहीं है कि सब कुछ हमारे सोचे  अनुसार ही हो ।अच्छे या बुरे चाहे जैसे भी हो परिवर्तन आते ही रहते हैं ।कभी -कभी ऐसा भी होता है कि आप लक्ष्य के समीप होते हैं किंतु कुछ ऐसा घटित होता है कि पुनः प्रारंभ करना पड़ता है ।ऐसे में प्रायः अनुभव होने लगता है कि लक्ष्य तक पहुंचना संभव हो पाएगा या नहीं ।जो थक जाता है वह प्रयास करना छोड़ देता है और कुछ ऐसे भी होते हैं जो पुनः साहस जुटाकर आगे बढ़ने का प्रयास करते हैं । तब संभव है कि पिछली बार जितना परिश्रम ही ना करना पड़े और आप अपने लक्षणों को पा लें  ।कहने का अर्थ है कि परिवर्तन का कोई निश्चित पैमाना नहीं होता कुछ परिवर्तन धीरे-धीरे होते हैं तो कुछ आकस्मिक ।जो इन दोनों के बीच में सामंजस्य बिठाना सीख जाता है वह अंत में विजयी होता है ।हम कठिन कार्य से बचते हैं, हमें लगता है कि इसमें ज्यादा समय और परिश्रम लगेगा ।कई बार कठिन कार्यों को पूरा करने के लिए अनेक दूसरे कार्य और चुनौतियों से भी जूझना पड़ता है ।हम कुछ कार्यों को करने से इसलिए भी बचते हैं क्योंकि हमें उनके परिणाम पर विश्वास नहीं होता ।कार्यों से बचने के स्थान पर हमें उन पर थोड़ा-थोड़ा कार्य करते हुए आगे बढ़ना चाहिए ।अपनी सीमाएं तय करना आवश्यक है ।परिश्रम को बहुत सारी सीमाओं में बाधित करना सही नहीं है ।दूसरों से मिलने से बचना या मनोरंजन के समय को व्यर्थ मानना हमें दूसरों से अलग कर देता है ।और हमें अकेलेपन की ओर ले जाने लगता है ।हो सकता है कि कई चीजें सच में आवश्यक हो पर हर चीज में लाभ या हानि ढूंढने की आवश्यकता नहीं होती ।श्रेष्ठ है कि हम बोले भाव संतुलन से बड़े विश्वास को चुने और सब विश्वास ही हो जाएं ।प्रत्येक क्षण हमें विश्वास या भय में से किसी एक को चुनने का विकल्प सदैव होता है ।विश्वास से ही हमारा प्रारंभ होता है और  वहीँ हमें पहुंचना है और उसी से हमारे सारे अनुभव जुड़े हैं ।आवश्यकता है तो बस लक्ष्य की ओर अपनी उर्जा को विश्वास की दिशा में ले जाने की ।कहते हैं भय और उदासी का कोई अर्थ नहीं रहता ।जब विश्वास जीवन की दिशा बन जाता है ।स्वयं के लक्ष्य पर केंद्रित करने के लिए नियमित प्रातः एवं संध्या के समय भावातीत ध्यान योग शैली का अभ्यास आपको आपके लक्ष्य पर निर्विघ्न यात्रा का अनुभव प्रदान करता है ।यह एक विश्वास है जो अनूभावनात्मक ज्ञान पर आधारित है ।यह आंतरिक शांति जो दिशा होने और यह जानने से आती है कि आप कहां जा रहे हैं और वहां कैसे पहुंचेंगे ।इसकी योजना है परिश्रम और ध्यान के साथ जीना ।यह व्यक्ति का एक प्रकार ना होकर एक कौशल है ।अतः इसका अर्थ है कि आप भी इसका अभ्यास कर पारंगत होकर आनंदित रह सकते हैं ।
।।जय गुरूदेव जय महर्षि।।

- ब्रह्मचारी गिरीश

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